सोमवार, 26 दिसंबर 2016

पिघले पाषाण रूपी जल का संदेश समाज के नाम

पाषाण जब पिघलता है
पानी बन निकलता है
फिर कहां होश
भागे मदहोश

पर्वत
पहाड़
घाटी

अल्हड़
इठलाती
बलखाती
मुस्काती

भागती चली धार
गगन को घूरती
पवन को चूमती
वसुंधरा को बेधती
मैदानों के पार 
सागर को ढूंढती
भागे चले  धार

ठहर जरा
ये नदी है या नार
जल है जलधार

लिंग है क्या
किसको है होश 
भागे मदहोश
पर्वत पहा़ड़ घाटी 
मैदानों के पार 
भागे जलधार 

ये मुस्कान मेल की गाथा है जो सतह के ऊपर भागने के साथ कुछ पल ठहर अब अंतःसलिला होकर अपनी तैयारी में संलग्न है।

क्षिति जल पावक गगन समीरा
का सूत्र
कुछ इस तरह तन मन पर खुला है कि इसे सुलझाने में आगे बढ़ाने में यह एक जीवन तो कम है।

पर

जितनी सांसें हैं अपने पास 
उससे अधिक उम्मीदें हैं अपने पास 

और
क्यों ना 

संभावनाओं के साथ हर पल  
खुल कर जिया जाये
लक्ष्य के लिये जी भर लगा जाये 

इसी लिए मुस्कान मेल ने एक सप्ताह के विराम के बाद,  एक अनिश्चितकालीन विराम लिया है। 

यह विराम आराम के लिए नहीं है।

आगामी वसंत पंचमी से पहले अपनी तैयारियां पूरी हो जायें और हम ठोस कलेवर में पुस्तकाकार अपनी बात समाज के समक्ष रख सकें इसके लिए विराम है। इस अवधि में मुस्कान मेल की बातों को संयोजित कर ठोस तथ्यों के साथ सबके सामने उपस्थित करने की योजना है।

मुस्कान मेल की अब तक की उपलब्धि संतोषजनक है। 
ड्रीम द्वारका की प्रगति धीमी पर सघन है।
संतोषजनक 
सुखद

यही तो लक्ष्य है जीवन का।

हर किसी का तन स्वस्थ हो
मन प्रसन्न हो
जीवन आनन्दमय हो।

आप हर पल ऊर्जस्वित रहें
यह कामना है

शुभ विदा वर्ष 2016.