सोमवार, 26 दिसंबर 2016

पिघले पाषाण रूपी जल का संदेश समाज के नाम

पाषाण जब पिघलता है
पानी बन निकलता है
फिर कहां होश
भागे मदहोश

पर्वत
पहाड़
घाटी

अल्हड़
इठलाती
बलखाती
मुस्काती

भागती चली धार
गगन को घूरती
पवन को चूमती
वसुंधरा को बेधती
मैदानों के पार 
सागर को ढूंढती
भागे चले  धार

ठहर जरा
ये नदी है या नार
जल है जलधार

लिंग है क्या
किसको है होश 
भागे मदहोश
पर्वत पहा़ड़ घाटी 
मैदानों के पार 
भागे जलधार 

ये मुस्कान मेल की गाथा है जो सतह के ऊपर भागने के साथ कुछ पल ठहर अब अंतःसलिला होकर अपनी तैयारी में संलग्न है।

क्षिति जल पावक गगन समीरा
का सूत्र
कुछ इस तरह तन मन पर खुला है कि इसे सुलझाने में आगे बढ़ाने में यह एक जीवन तो कम है।

पर

जितनी सांसें हैं अपने पास 
उससे अधिक उम्मीदें हैं अपने पास 

और
क्यों ना 

संभावनाओं के साथ हर पल  
खुल कर जिया जाये
लक्ष्य के लिये जी भर लगा जाये 

इसी लिए मुस्कान मेल ने एक सप्ताह के विराम के बाद,  एक अनिश्चितकालीन विराम लिया है। 

यह विराम आराम के लिए नहीं है।

आगामी वसंत पंचमी से पहले अपनी तैयारियां पूरी हो जायें और हम ठोस कलेवर में पुस्तकाकार अपनी बात समाज के समक्ष रख सकें इसके लिए विराम है। इस अवधि में मुस्कान मेल की बातों को संयोजित कर ठोस तथ्यों के साथ सबके सामने उपस्थित करने की योजना है।

मुस्कान मेल की अब तक की उपलब्धि संतोषजनक है। 
ड्रीम द्वारका की प्रगति धीमी पर सघन है।
संतोषजनक 
सुखद

यही तो लक्ष्य है जीवन का।

हर किसी का तन स्वस्थ हो
मन प्रसन्न हो
जीवन आनन्दमय हो।

आप हर पल ऊर्जस्वित रहें
यह कामना है

शुभ विदा वर्ष 2016.   

मंगलवार, 8 नवंबर 2016

बहुत चले, थोड़ा रुके, मुस्कुराए संसार ड्रीम द्वारका परियोजना की पहली वर्षगांठ कार्तिक शुक्ल नवमी 09-11-2016

बहुत चले, थोड़ा रुके , मुस्कुराए संसार
An Initiative परिवार संग इठलाए घर बार
http://www.facenfacts.com स्नेह  पाएं बार बार
http://www.jantajanardan.com संग खिलखिलाएं हर बार 

संक्षेप में यही है ड्रीम द्वारका के एक वर्ष लगातार चलते रहने का लेखाजोखा ।

आज फिर कार्तिक शुक्ल नवमी है । आज ही की तिथि को ठीक एक साल पहले इस ब्लाग की विधिवत शुरुआत 20 November 2015  को हुई थी ।

कार्तिक शु्क्ल नवमी यानि भारतीय संस्कृति के लिए प्रत्येक वर्ष अक्षय नवमी या आंवला नवमी के रूप में किसी नए कार्य की शुरुआत के लिए एक महत्वपूर्ण तिथि ।

आज वर्ष दो हजार सोलह में भी एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक मोड़ पर हम खड़े हैं।

ड्रीम द्वारका परियोजना, भारत वर्ष, अमरीका और पूरी दुनिया के लिए यह तिथि बेहद महत्वपूर्ण साबित होगी। 

ड्रीम द्वारका परियोजना ने अपने घोषणा पत्र में जिन लक्ष्यों को तय किया, उस पर धीमी गति से , सधी चाल से चल रहा है। समय अपनी गति से चलेगा । जिस अनुरूप लक्ष्यों पर समय निवेश किया गया उस अनुपात में परिणाम बहुत अच्छे निकले हैं। एक बीज रूप से पौधा रूप में हम स्थिर रूप में खड़े होने में सफल हुए हैं।

ड्रीम द्वारका परियोजना के अंतर्गत तन  को स्वस्थ मन को प्रसन्न बनाने का अभियान मुस्कान मेल अपने आपको सफलता पूर्वक स्थापित कर चुका है।

पौधा रोपण के स्तर पर अपने गमले में उगाए दो आंवला वृक्ष देव एक मंदिर और एक विद्यालय में मुस्कुरा रहे हैं । दोनों द्वारका उपनगरी में विराजमान हैं। उपलब्ध समय और परिस्थितियों में  वृक्ष देवों के अन्य स्वरूप पर कार्य नहीं किया गया। 

हमें विगत नवरात्रि पर अक्टूबर महीने में तन के रूप में दो समाचार वेबसाइट फेसएनफैक्ट्स और जनता जनार्दन डाटकाम अंग्रेजी और हिन्दी में मिले हैं। इनके साथ आने वाले दिनों में हम आगे बढ़ेंगे और मुस्कुराएंगे ।

पर इससे पहले मानव मूर्तियों को प्राणवंत बना, मुस्कुराने का अभियान 
जानकी जयंती पंद्रह अप्रैल से इस वर्ष एआइजी वाट्सएप परिवार में मुस्कान मेल के रूप में शुरु हुआ

आज यह दुनिया के अनेक देशों , भारत के अनेक नगरों और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में अनेक घरों में ध्वनि संदेश के रूप में सुना जा रहा है।

तन को स्वस्थ रखने मन को प्रसन्न बनाने के लिए प्रति दिन प्रातःकाल आडियो संदेश के रूप में दस से बीस मिनट तक का ध्वनि संदेश रिकार्ड किया जाता है और मुस्कान मेल, एआइजी वाट्सएप समूह सहित लगभग आधा दर्जन समूहों को फारवर्ड किया जाता है। 

मुस्कान मेल की लोकप्रियता तेज गति से बढ़ रही है । लोग इसे सुनना पसंद करते हैं । इसका अगला चरण लोगों के तन मन की प्रसन्नता के लिए निःशुल्क प्रशिक्षण शिविर के रूप में विकसित किया जायेगा।

ड्रीम द्वारका लोक कल्याण के लिए आरंभ हुआ है । लोक का अर्थ केवल मानव नहीं अपितु इस धरती के सभी जीव अजीव दृश्यमान अदृश्य सभी पक्ष का कल्याण हो और परस्पर सहयोग से हम सभी एक दूसरे का कल्याण करें।

द्वारका नगरी में भंवरों का आगमन हो गया है । सितंबर महीने में हमारे अपने आवास में भंवरा देव जी ने गुनगुनाते हुए आकर अपनी उपस्थिति दर्ज करायी। अविन पाठक ने अपने कमरे में उनकी उपस्थिति से परिचित कराया। बाद में ये भंवरा महोदय हमारे आवास के सामने के मैदान में पेट्रोल पंप के पीछे पेड़ों के झुरमुटों के ऊपर पीपल और  कीकर के फूलों पर देर तक मंडराते रहे ।

भंवरों के द्वारका में आगमन के लिए हमने इस साल जानकी जयंती से पहले होली के आसपास से प्रार्थना शुरु की थी । यह प्रार्थना नवरात्रि में स्वीकार कर ली गयी । भंवरे अब द्वारका के पर्यावरण का हिस्सा बन गए हैं।

  चीलें दो हजार नौ में पहली बार दिखी थीं। 2011  में अक्टूबर महीने में लगभग पांच सौ से हजार चीलों की सभा हमारे सामने वाले मैदान में हुई थी और इस वर्ष 2016 , मार्च से जून के बीच हमने चील दंपत्तियों को अपने दो बच्चों की परिवरिश करते देखा है। 

  चील के दोनों बच्चे अब बड़े हो गए हैं। पर जब ये छोटे थे तो 2016, अगस्त महीने में कबूतरों के झुंड. दो चार कौओं और दो टिटहिरी ने इन दोनों बच्चों को माता पिता की अनुपस्थिति में किस तरह दूर आसमान में भगाया था हम उसके साक्षी हुए थे। लेकिन यह चील परिवार हमारे पड़ोस में रहता है। बच्चे अब नवंबर तक वयस्क हो गए हैं और कोई अन्य चिड़ियाँ इनके साथ हिमाकत नहीं कर सकती।

रंग बिरंगी तितलियां  द्वारका के आसमान में खूब दिखती हैं। अनेकों तरह की चिड़ियां हैं। 
यानि पेड़ जिस अनुरूप द्वारका में लगे हैं उस अनुरूप पक्षी जगत और कीट जगत का संतुलित विकास हो रहा है । 
यह ड्रीम द्वारका के लिए संतोष की बात है।

एआइजी के साथ मिल कर हमने प्रदूषण के विरुद्ध विजया दशमी पर रावण पुतला दहन बंद करने  और दीवाली पर आतिशबाजी पूरी तरह बंद करने और दीप जलाने का अभियान शुरु किया।

इस अभियान को बीज रूप में व्यापक सफलता मिली ।

डॉ ज्ञान सिंह गौडपाल के नेतृत्व में अनेक लोगों ने इसे अपना समर्थन दिया। 

दिल्ली प्रदेश माहेश्वरी समाज की अगुआ किरण लाढा , एआइजी परिवार की आदरणीया मनोरमा दीदी जी , सुनीता अहलुवालिया, श्रुति शर्मा, सुमेधा रानी, रत्ना माहेश्वरी, हरजीत कौर, सतविंदर कौर, जैसी अनेक मातृशक्तियों ने आतिशबाजी के विरुद्ध अभियान चलाया ।

यह अभियान द्वारका में सीमित रूप से और  पश्चिमी दिल्ली के अनेक इलाकों रजौरी गार्डन, टैगोर गार्डन, मानसरोवर गार्डन, रमेश नगर, सुभाष नगर, तिलक नगर जैसे क्षेत्रों में सघन रूप से लगातार अनेक दिनों तक चला।

एआइजी परिवार के वरिष्ठ कनिष्ठ सदस्यों ने इसमें बढ़चढ कर योगदान दिया।

सरदार सतनाम सिंहजी ने अभियान मार्च के लिए निःशुल्क प्रतिदिन अपने वाहन उपलब्ध कराये। 

सजगता अभियान रैली मार्च में युवा सुमीत के अलावा बुजुर्ग बलबीर शर्मा, मोहन अग्रवाल, प्रवीण कुमार सूद, योगाचार्य कौशल जी जैसे मनीषियों , विद्वानों ने हिस्सा लिया।

दीपावली पर दीपक जलाओ अभियान की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि समाज के हर वर्ग के लोगों ने इस भावना का स्वागत किया। देश के अनेक हिस्सों से धन त्रयोदशी से लेकर दीपावली तक  अपने घर प्रांगण में  दीपक जलाने के संदेश मिले।
सबसे उल्लेखनीय संदेश राजकोट जगन्नाथ मंदिर से मिला। आदरणीया साध्वी अरुंधती दीदी जी के नेतृत्व में राजकोट मंदिर में दीपावली पर भव्य दीपकों से मंदिर प्रांगण सुसज्जित हुआ। राजकोट  जगन्नाथ मंदिर के चित्र साथ संलग्न हैं।

 मंदिरों  में जब इस तरह दीप जगमगाते हैं तो यहाँ पूजन के लिए आने वाले भक्त भी प्रेरित होते हैं। यहाँ से वापस लौटते समय अपने घरों में दीपक जलाने का संकल्प लेकर जाते हैं । 

राजकोट जगन्नाथ मंदिर का यह संदेश दूर तक पहुंचेगा। देर तक लोगों के तन मन को आलोकित करेगा।

दिल्ली के कुछ मंदिरों में भी दीपदान हुआ।

पर आतिशबाजी नहीं चलाने का लक्ष्य आटे में नमक के बराबर भी प्राप्त नहीं हुआ।

परिणाम स्वरूप दिल्ली के ज्ञात इतिहास में पहली बार  दीपावली के अगले दिन से नाक पर पट्टी लगाने की नौबत आ गयी जो आज 09 नवंबर तक जारी है।

सुश्रुत संहिता में ऋतुचर्या अध्याय में जनपद ध्वंस होने के जिन कारणों का उल्लेख किया गया है वह केवल दिल्ली में ही नहीं अपितु देश के अधिकांश स्थानों पर घटित हुए । परिणाम स्वरूप पूरे देश में दीपावली के अगले दिन से जहरीले वायु प्रदूषण की अभूतपूर्व स्थिति उत्पन्न हुई। 

बड़ी संख्या में लोग, आंखों में जलन, उल्टी,  श्वांस रोग, शिरो वेदना रोग सहित अनेक बीमारियों के शिकार हुए।लेकिन देश की राजधानी खबरिया चैनलों की भी राजधानी है। 

देश में अन्य स्थानों की वेदना की सूचना तो कम मिली पर दिल्ली में भयंकर प्रदूषण की खबर छाती पीट पीट कर दहाड़ें मार मार कर गायी और सुनायी गयी।


हाहाकार मच गया । आनन फानन में देश की राजधानी दिल्ली में स्कूल बंद कर दिए गए।

अमला चाकर नौकर मालिक , समाधान किसी के पास नहीं है क्योंकि अपने अतीत से सबक लेने की फुर्सत किसी को नहीं है। जिस पल नवरात्रि के दिनों में आतिशबाजी से दूर रहने के लिए सजग किया जा रहा था अधिकांश लोग सुनने को नहीं तैयार हुए। जिन्होंने सुना उन्हें दीपक पर स्थिर रहते हुए भी आतिशबाजी से दूर रहने की संकल्प शक्ति जागृत नहीं हुई।
परिणाम अब सब भुगत रहे हैं।

क्या वाकई समाधान किसी के पास नहीं है ?

नहीं ऐसा नहीं है । समाधान है। ड्रीम द्वारका के पास समाधान है। स्थायी समाधान है। 
पर इस समाधान पर चलेगा कौन ?
 विश्वास कौन करेगा ?

लोग विश्वास कर सकें 
इसलिए एक छोटा सा वैदिक समाधान यंत्र विडियो संदेश के रूप में यू ट्यूब पर अपलोड किया गया है। 

उदाहरण के रूप में यहां साथ संलग्न किया गया है।  
इसे सुनें
देखें।
अपने घरों में आजमा कर देखें। 

घर के अंदर का 
प्रदूषण 
हर हाल में दूर होगा 
सौ प्रतिशत 
हजार प्रतिशत 
अनंत प्रतिशत दूर हो जायेगा 
यह  विश्वास हमें है।

सत्य को गवाही की जरूरत नहीं होती फिर भी आप अपनी आंखों से विडियो देखें, आज़माएं।

अपने घर के अंदर का प्रदूषण दूर होकर सुरभित वातावरण होने का  जिस पल भरोसा हो जाए उस पल बाहर के प्रदूषण के समाधान के लिए साथ मिल कर हम चलें यह आह्वान है।

  दिल्ली के वातावरण में  कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि से स्वतः स्थिति संभलनी शुरु हुई। सप्तमी और अष्टमी को स्थिति थोड़ी बेहतर हुई है पर यह क्रम बना रहेगा इसकी उम्मीद नहीं रखें । हम अपने कर्मों का फल प्राप्त करेंगे। 

आज कार्तिक शुक्ल नवमी है। मौसम फिर से करवटें बदल सकता है। हम सामूहिक प्रयासों से अपने पर्यावरण को बेहतर बना सकते हैं। ये प्रयास सत्य पर आधारित हों , ज्ञान पर आधारित हों कर्म निष्ठा पर आधारित हों तो सफलता निश्चित मिलेगी।

एक ओर अमरीका में अप्रत्याशित चुनाव परिणाम अधिकांश के लिए आए हैं। पर मुस्कान मेल ने जब डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी उम्मीदवारी की अधिकृत घोषणा भी नहीं की थी, लगभग डेढ़ वर्ष पहले उसी समय भविष्यवाणी की थी कि वे विजयी हो सकते हैं।

लोकतांत्रिक चुनाव जब कभी होते हैं 
जहां कहीं होते हैं 
तो 
वोट डालते समय 
एक ही कारक 
मतदाता के लिए मुख्य होता है 
हमारे हितों की रक्षा सबसे बेहतर कौन कर सकता है। 

भारत में विगत 2014  संसदीय चुनाव में  वर्तमान प्रधानमंत्री ने यही विश्वास मतदाताओं को दिया था। दिल्ली विधानसभा के विगत 2015 चुनाव के दौरान यही विश्वास वर्तमान मुख्यमंत्री ने मतदाताओं को दिया था ।
इसी विश्वास के बल पर अजेय बहुमत के साथ डोनाल्ड ट्रंप जिन्हें कभी विदूषक और कभी दुनिया के लिए खलनायक घोषित किया गया आज दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र के मुखिया बन चुके हैं।

ईश्वर डोनाल्ड ट्रंप को  अच्छा स्वास्थ्य दे, उन्हें घर और बाहर में सशक्त बनने में सहयोग करे, स्पष्ट दृष्टि दे जिसके बल पर वे हमारे समय की समस्याओं का समाधान ढूंढ पाएं।

दूसरी ओर स्वदेश भारत में आज 9 नवंबर 2016,  कार्तिक शुक्ल नवमी को पुराने पांच सौ, एक हजार के नोट अप्रासंगिक बन गए। इतिहास बन गए। 

इस अर्थ में अक्षय नवमी देश की अर्थव्यवस्था के लिए काले धन से मुक्ति की दिशा में अक्षय तिथि साबित हो हम कामना करें।

अंधकार के बिना अस्तित्व असंभव है पर अंधकार जब अस्तित्व के लिए चुनौती बन जाए तो एक दीपक सघन अंधेरे में भी रौशनी के लिए पर्याप्त है। 

हम रौशनी के साथ चलें। सत्य के साथ चलें। अपने समय की समस्याओं के समाधान के लिए मिल कर प्रयास करें।

संगच्छध्वं.............

आइए हम मिल कर साथ चलें। 

साथ मुस्कुराएं

  
























Smog buster naturally by Vaidik Science

https://www.youtube.com/watch?v=72QwEmPd46E


    

सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

संदेश दीपावली के, लौ लगाए रखना दीप जलाए रखना Devoted to Dr Gyan Singh Gaudpal and Team AIG

दीप 
जलाए रखना 

लौ 
लगाए रखना

तन 
अपना तपेगा

मन 
अपना जलेगा

आस 
बचाए रखना ।

झिलमिलाते
सतरंगे सपनोंं में

चुन लो 
वह एक 
जो है नेक
बस एक 

इस एक 
को  
संजोए रखना 
मिल जाए
तो 
संभाले रखना 

मिल गया जिस पल
खिल उठे हर पल .

मन प्राण गाए गीत
तन तरंगित पाए मीत
हो उमंगित गाए गीत 

इस पल
उस पल
पल पल
हर पल 

लौ लगाए रखना 
दीप जलाए रखना 


कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा की सुबह

धूसर 
आसमान

हैं 

ये हमारे 

घर आंगन ?

युद्ध का मैदान ?

गंदला 
आसमान 
बारुदी महक  
सीने में धमक 

कहर कुदरती ?
हमारी दास्तान ?

ज़हरीली हवा 
दुश्मनों की फ़ौज ?
हमारी मौज ? 

लौ 
लगाए रखना
दीप जलाए रखना 

तन 
अपना तपेगा
मन 
अपना जलेगा 
आस
बचाए रखना ।

लौ लगाए रखना
दीप जलाए रखना
सुबह होने तक
उम्मीद बनाए रखना 

Devoted to Dr Gyan Singh Gaudpal and Team AIG 

दीपावली पर हमारा दीप जलाओ अभियान  
जारी रहेगा
लक्ष्य पाने तक
हमारी सांस थमने तक
बारुदी धमाका बंद करने तक 

रविवार, 4 सितंबर 2016

वाराह जयंतीः 2016 ड्रीम द्वारका संकल्प के साथ मुस्कान मेल यात्रा और सूकर अवतार की प्रासंगिकता

वाट्सएप पर Smile Mail Audio message 


कार्तिक शुक्ल नवमी यानि अक्षय नवमी तिथि पर 20 नवंबर 2015  को शुरु हुई ड्रीम द्वारका परियोजना के विचार धीरे धीरे अनेक लोगों तक पहुँचने लगे हैं। इंटरनेट पर वाट्सएप पर Smile Mail Audio message के माध्यम से प्रति दिन सैकड़ों लोगों तक अनेक नगरों, प्रांतो, देशों में मुस्कुराने की अपील की जा रही है। इसके सकारात्मक परिणाम भी मिल रहे हैं।

पांच वाट्सएप समूह और एक ब्लॉग के माध्यम से स्वस्थ तन, प्रसन्न मन, सुखी, शांत और संतुष्ट जीवन का संदेश लोगों तक पहुंच रहा है। लोग अभिरूचि ले रहे हैं।

सबसे अच्छी बात है कि लोगों की प्रतिक्रियाएं आधे घंटे के भीतर अनेक दिन देखने को मिली हैं। यह प्रतिक्रिया दर्शाती है कि  जो कुछ कहा जाता है लोग उसे नियमित सुनते हैं और सुनकर अपनी राय रखते हैं।
यह कम नहीं है।

लोग सुनें और साथ चलें ताकि हम अपनी समस्याओं के निदान के लिए मिल कर चलें यही ड्रीम द्वारका का लक्ष्य है। 


हालांकि ड्रीम द्वारका के जिस तन की अपेक्षा थी वह अब तक पूरी नहीं हुई है। कब तक होगी इसकी भी कोई जानकारी नहीं है पर इसके विकल्प के तौर पर यह ब्लॉग नियमित होने लगा है।

सीमित साधनों में संतोष के लिए यह भी कम नहीं है।

इस ब्लॉग तन पर यदि वाट्सएप  Smile Mail Audio message  का समावेश हो सकता तो इसकी पहुंच और तेज गति से बढ़ती लेकिन अभी यह विकल्प ब्लॉग नहीं देता है।

वाट्सएप पर पोस्ट Smile Mail Audio message की विडियो फिल्म बन सकती है पर इसके जोखिम बड़े हैं। आवाज़ के माध्यम से ये संदेश जितने प्रभावी बनते हैं विडियो में उससे अधिक प्रभावी हो सकते हैं ।  पर इसके लिए समुचित संसाधनों का होना आवश्यक है। कम संसाधन से तैयार विडियो संदेश अपना प्रभाव खो सकते हैं। इसलिए जिस रूप में जैसा चल रहा है वह जारी रहेगा।  

पूरे एक साल की यात्रा पर लेखा जोखा रखूंगा कि हमने कितनी लंबी यात्रा की और कितने पड़ावों को पार कर लक्ष्य तक पहुंचे।

वाराह जयंती संदेश 


आज यानि 04 सितंबर 2016 को दिल्ली में  भाद्रपद यानि भादो के शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि है। आज की तिथि में काल क्रम में पहले कभी वाराह अवतार हुआ था। इसकी जयंती आज भी मनाई जाती है। वाराह क्षेत्र में, वाराह मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है। ये अलग बात है कि फिलहाल भारत देश में या दुनिया भर में  वाराह देव या देवी के बहुत कम मंदिर बचे हैं । हालांकि एक दौर ऐसा रहा है जब इनको समर्पित अनेक मंदिर थे और बड़ी संख्या में मतावलंबी भी रहे हैं।

वाराह जयंती  मानव के उद्भव -विकास और जल प्रलय की विभिन्न अवस्थाओं को समझने के लिए बड़ी ही महत्वपूर्ण तिथि है। जो मैं देख पा रहा हूं अतीत के कालखंड, स्मृतियों, पुराणों के संकेत और वर्तमान की परिस्थितियों को देख कर वह विगत अवधारणाओं को बदल कर नयी दृष्टि से देखने और समस्याओं का समाधान ढूंढने का संकेत दे रहा है।

सनातन भारतीय संस्कृति में आस्था रखने वाले लोगों की ओर से सामान्यतः वाराह अवतार के बारे में विचार करते समय वैज्ञानिक दृष्टि रख कर विचार करते समय कहा जाता है कि
मत्स्यावतार यानि जल में जीवन की शुरुआत होने की अवस्था का विवरण
कूर्मावतार यानि जल से जमीन पर जीवन की शुरुआत होने की अवस्था का विवरण
और सूकर अवतार यानि वाराह अवतार के साथ धरती पर जीवन पूरी तरह विकसित होेने की अवस्था का विवरण देने वाला अवतार

मुझे लगता है कि इस सोच को नए तथ्यों के आलोक में देखने की जरूरत है।

मैं समझता हूं कि
मत्स्यावतार यानि मानवों की स्मृति में प्रथम जल प्रलय के बाद की स्थिति
कूर्मावतार यानि मानवों की स्मृति में द्वितीय जल प्रलय के बाद की स्थिति
वाराह अवतार यानि मानवों की स्मृति में तृतीय जल प्रलय के बाद की स्थिति

का वर्णन करते हैं।

वाराह अवतार यानि शूकर अवतार के साथ तृतीय जल प्रलय को जोड़ने का आधार उस संकेत से मिल रहा है जिसमें यह कहा गया है कि

हिरण्याक्ष  पृथ्वी को बलपूर्वक जल के अंदर रसातल में ले जाता है और अपने यहां कैद करके रखता है। पृथ्वी को ऊपर लाने में देवता असमर्थ हो गए। यह असमर्थता धरती के ऊपर मौजूद जल की स्थिति के बारे में संकेत दे रही है। 

दरअसल यह जल मल से भरा हुआ था।

यहां प्रश्न यह है कि धरती की सतह से ऊपर का संपूर्ण जल 
मल से, विष्ठा से इस तरह आविष्ट कैसे हुआ ?  
क्यों हुआ ? 
किसने किया ? 

वाराह पुराण की कथाएं इन सवालों का विवरण या जवाब नहीं दे रही हैं । सवाल भी इनमें नहीं उठाया गया है। बस यह संकेत है कि देवता विष्ठा में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। 

हिरण्याक्ष के साथ संघर्ष के लिए देवता रसातल नहीं जा सकते थे क्योंकि विष्ठा से घिरे आवरण के अंदर रसातल में जाकर धरती को बाहर निकालना देवताओं के वश में नहीं था । देवता विष्ठा में प्रवेश नहीं कर सकते हैं इसलिए उन्हें विष्णु से आग्रह करना पड़ा और विष्णु को सूकर अवतार लेकर धरती का उद्धार करने का उपक्रम करना पड़ा क्योंकि एक मात्र सूकर ही ऐसा जीव है जो मल के साथ प्रसन्नता पूर्वक रह सकता है क्योंकि मानव मल उसका प्राकृतिक आहार है।

मानव मल सूकर का प्राकृतिक आहार के साथ संबंध है सूकर अवतार का  


इस तथ्य पर विचार आवश्यक है। 

मानव शरीर संरचना और सूकर शरीर संरचना आपस में मिलते जुलते हैं। यहां तक कि हृदय प्रत्यारोपण के लिए सूकर के हृदय के इस्तेमाल पर गंभीरता से विकल्प के रूप में विचार हो रहा है, प्रयोग चल रहे हैं। सूकर के अनेक अंगों का उपयोग मानव अंग के विकल्प के रूप में हो सकता है, इस पर प्रयोग दशकों से चल रहे हैं। 

ऐसे में मानव -सूकर संबंध और सूकर अवतार पर नए सिरे से विचार आवश्यक हो जाता है। 

अपने उद्भव के बाद से सूकर की प्राकृतिक संरचना  और आहार विहार की अवस्था में काल क्रम में कोई खास बदलाव नहीं आया है। सूकर आज भी जल स्रोत के नजदीक रहता है। यह जल स्रोत साफ है या गंदा इससे  सूकर के स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। बेहद प्रदूषित जल में जहां बायोमास बेहद कम है सूकर के जीवनयापन में कोई खास बाधा नहीं आती है। 

हालांकि आधुनिक समय में इसे लेकर कोई प्रयोग नहीं हुए हैं। पर मानव मल के निस्तारण के लिए नए सिरे से इस पर प्रयोग हो सकते हैं। चीन में हाल-हाल तक मानव मल के साथ सूअर पालन की परंपरा रही है और दुनिया भर के साथ भारत में भी आधुनिक शौचालयों की व्यवस्था से पहले शूकरों द्वारा मानव मल के निस्तारण में प्रयोग होता रहा है। सूकर मानव मल को बड़े चाव से खाता है क्योंकि मानव मल इसके लिए पौष्टिक आहार है।
मानव मल सूअर के लिए पौष्टिक आहार है इसमें चौंकने या नकारने वाली कोई बात नहीं बल्कि यह वैज्ञानिक तथ्य है कि हर जीव ( पौधे या पशु -पक्षी) का तन या उसके तन से निकला उत्सर्जित पदार्थ दूसरे जीव के लिए प्राकृतिक पौष्टिक आहार है। 

उदाहरण के लिए मानव के लिए शहद रूपी अति पौष्टिक आहार और कुछ नहीं बल्कि मधुमक्खियों की उगली हुई उल्टी है जिसे खास विधि से मधुमक्खियां तैयार करती हैं ताकि आवश्यकता पड़ने पर उसे आहार के रूप में इस्तेमाल कर सकें। 

पागुर करने वाले सभी जीव जैसे गाय भैंस अपने निगले आहार को फिर से अपने मुंह में वापस लाकर चबाती और निगलती हैं ताकि वह सुपाच्य हो सके। अनेक चिड़िया अपने निगले आहार को अपने पेट से निकाल कर थोड़ा चबाकर वापस अपने छोटे बच्चों को खिलाती है। यह सामान्य आहार विहार व्यवस्था है। 

इसलिए चौंके नहीं। 

वाराह जयंती पर आज इस तथ्य पर ये विचार इसीलिए किया जा रहा है कि 
जब सूकर अवतार हुआ 
उससे पहले के जलप्रलय से पहले मानव मल के निस्तारण की समस्या ने क्या रूप लिया 
यह कौन जानता है ?
कौन कह सकता है पूरे विश्वास के साथ अतीत में ठीक ठीक ऐसा ही हुआ ?
या आने वाले दिनों में फिर ऐसा नहीं होगा ?

आधुनिक विज्ञान जितने सवालों का जवाब देता है उससे कहीं अधिक सवाल बिन जवाब के रह जाते हैं। 

मैं समझता हूं इन सवालों के जवाब हमें दुनिया भर की दंत कथाओं या पुराण कथाओं से मिल सकते हैं ।

हमें इन कथाओं में उपलब्ध संकेतों को समझना होगा। इन संकेतों को समझ कर समय रहते सवालों का जवाब ढूंढना होगा ताकि हम अपने युग की समस्याओं का समाधान ढूूंढ पाएं।

धरती पर अन्य जीवों की तुलना में जिस रूप में मानवों की संख्या बढ़ रही है , मानव जिस रूप में सभी जल स्रोतों को प्रदूषित कर रहा है उसमें एक समय आ सकता है जब जल प्रलय हो और धरती के ऊपर प्रदूषण रूपी मल की मोटी परत छायी हुई हो 

ऐसे में इस समस्या के निस्तारण के लिए प्रजापालक देव विष्णु को सूकर के रूप में एक बार फिर अवतार लेना पड़ेगा। बेहतर है हम इसकी नौबत ही नहीं आने दें। 

क्या ख्याल है आपका ?

( इस आलेख में वाराह पुराण और अन्य पुराणों से समुचित संदर्भ बाद में जोड़े जाएंगे। ) 

सोमवार, 29 अगस्त 2016

शिव संकल्प औऱ मुस्कान मेल पैगाम

पहले मुस्कुराइए फिर नज़रें आगे दौड़ाइए।

ये नहीं चलेगा कि आप अपनी मोहिनी सूरत को रोनी बनाकर मुस्कान मेल देखने चले आइये।बिल्कुल नहीं चलेगा।

आपको पता हो या नहीं मैं जानता हूँ कि आप और केवल आप दुनिया में सबसे सुंदर हैं।

अपने नाजुक सुंदर होठों पर मुस्कान लाइए ना
ये देखिए
आ गयी
पतली सी मुस्कुराहट....................

बिल्कुल छुरी वाली मुस्कुराहट

देखिए, सर्जिकल ब्लेड वाली आपकी इस मुस्कान से किसी की मौत हो सकती है ।

इसलिए ये वाली नहीं

चीज़ वाली मुस्कान लाइए.....................

ये हुई ना बात।

जब चीज़ वाली चौड़ी मुस्कान 

चेहरे पर आती है ना........

तो

होंठ, पतले हों या मोटे,

गोरे हों या काले,

लिपस्टिक लगे हों या चिपस्टिक,

आप बहुत खूबसूरत दिखते हैं.........

सच्ची.......

बिल्कुल सच्ची.......

क्या कहा ? .......

चलिए , मेरा भरोसा मत कीजिए। आइने में अभी देख लीजिए।

वैसे यदि आइना नहीं हो तो कोई बात नहीं, जो कोई नजदीक है, 

उसकी आंखों में झांक कर अपने प्यारे से चेहरे को देखिए।

अब हुआ भरोसा।

है ना दुनिया का सबसे खूबसूरत चेहरा आपका।  

कोई पास नहीं है कोई बात नहीं

मैं हूं ना

अपने इस लेख के माध्यम से.........

अपनी आवाज के माध्यम से........................

मैं यह घोषित करता हूं कि

आप दुनिया में सबसे ज्यादा खूबरसूरत  हैं ।

देखिए जिस दिन अपने मन में यह विश्वास आ जाता है कि हम दुनिया में 

सबसे सुन्दर हैं, सबसे योग्य हैं और हम अपनी ज़िन्दगी अपने फैसलों के 

अनुसार चलाएंगे उस दिन से हमारे अन्दर एक बुनियादी बदलाव आना शुरु हो जाता है।
   

     जिस दिन हम अपनी खुशी के लिए दूसरों के दिए  सर्टिफिकेट की 

परवाह किए बिना अपने फैसले पर यकीन करने लगते हैं उस पल से 

हमारे तन और मन में आनन्द का एक नया दरवाजा खुलना शुरु होता है।


लेकिन यह दरवाज़ा है कहां ...

कैसे खुले यह दरवाज़ा.........

ये सच है कि इस दरवाजे को ढूंढना और खोलना आसान नहीं है।

लेकिन ये भी सच है कि यह दरवाज़ा कहीं बाहर नहीं है

इसे ढूंढने के लिए

पाने के लिए

खोलने के लिए

हमें ही कोशिश करनी पड़ती है। हमारे अलावा कोई दूसरा हमारे बदले यह प्रयास नहीं 

कर सकता। 

हां सहायता जरूर कर सकता है। 

और यह सहायता पहुँचायी जाती है हर किसी को। 

कोई ना कोई होता है 

या होती है जो 

उस समय अनायास मदद के लिए आ जाए जब आपको कोई उम्मीद कहीं से नहीं दिख 

रही हो। 

आप ये कोशिश कर सकें..

इसीलिए तो मुस्कान मेल आपके पास रोज पहुंच रहा है

कि

आप अपने को जानिए

अपने तन मन की बनावट को जानिए।

अपना दरवाज़ा ढूंढ निकालिए और अपनी चाहत को पूरी कर डालिए।

कोशिश शुरु तो कीजिए।

कोशिश के शुरु करने के लिए ज़िन्दगी में इस पल से बेहतर और कोई पल नहीं होता। 

बस अभी से शुरु हो जाइए।

लेकिन पहले मुस्कुराइए क्योंकि ये रास्ता मुस्कान हाइवे पर आगे बढ़ता है।
         

क्षिति जल पावक गगन समीरा पंच तत्व यह अधम शरीरा के माध्यम से मुस्कान मेल 

यही तो कर रहा है। 

जानकी जयंती यानि 15 अप्रैल 2016 से शुरु होकर लगभग सौ दिनों से लगातार 

प्रातःकाल वाट्सएप पर आवाज़ के माध्यम से 

आप तक पहुंचना और आपको भरोसा दिलाना, आपसे मुस्कराने की अपील करना 

और क्या है

बस यही भरोसा दिलाना ना कि आप दुनिया में सबसे सुंदर हैं। आप कोशिश कर सकते हैं 

आप स्त्री हों या पुरुष

युवा या बुजुर्ग

मेरे लिए आप इस धरती पर सबसे खूबसूरत जीव हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि मैं आप से

प्यार करता हूं 

और आप मुझसे। 

क्यों भरोसा नहीं हुआ .............

देखिए आप मेरी आवाज सुनते हैं ना। अभी इस पल आपकी बेपनाह सुंदर आंखे इन 

शब्दों को पढ़ रही हैं ना.....

क्यों भला.......

यही प्यार है। यही स्नेह है। यही चाहत है । यही एक दूसरे के लिए सम्मान है।

और यह प्यार,

यह स्नेह

यह एक दूसरे के लिए चाहत

कुछ पाने के लिए नहीं हैं।

बस देना है।

और देना भी क्या

एक मुस्कुराहट

बस इतनी सी बात।  

हम ऐसी जानकारियां एक दूसरे को दें जिससे हमारा तन और मन दोनों स्वस्थ रहे, 

प्रसन्न रहे।  

तन स्वस्थ रहेगा तो मन प्रसन्न रहेगा। तन स्वस्थ और मन प्रसन्न रहेगा तो 

मुस्कुराएगा ही।

मुस्कान मेल का जन्म मुस्कान बांटने के लिए हुआ है। एक दूसरे से बिना किसी अपेक्षा 

के स्नेह देने के लिए हुआ है।

जब हम बिना किसी अपेक्षा के अपने पास उपलब्ध कोई भी जानकारी या सामान दूसरे

को ईमानदारी के साथ बांटते है ना

देते हैं ना

तो

इस बांटने से

देने से

लेने वाले को भी लाभ होता है

और

देने वाले को भी लाभ होता है।

यही लोक कल्याण है।

यही शिव संकल्प है।

यही सत्यम शिवम सुन्दरम है।

ये मत सोचिए कि जो दे रहा है

उसे लाभ नहीं होता है। देने वाले को भी बहुत लाभ होता है।

क्या लाभ होता है जिस पल देना शुरु कीजिएगा उस पल से समझना शुरु होगा।


बस ये याद रखिए कि ऐसी वस्तु , ऐसा धन या ऐसा ज्ञान दूसरे को मत दीजिए  

जो आपका अपना नहीं है।


मन , कर्म और वचन से जो कुछ आपका अपना है, वही आप दूसरे को दे सकते हैं। जो 

किसी दूसरे का है वो आप नहीं दे सकते।

अपना कमाया हुआ धन

अपने तन और मन पर किये प्रयोग का परिणाम

ही आप दूसरों को दे सकते हैं।  

फारवर्डेड मैसेज या किताबों में पढ़ी बातें यदि आपके अपने जीवन में शामिल नहीं हैं तो 

आपकी कही बातों का कोई असर नहीं होगा।

कुछ पल या कुछ दिनों तक ऐसा हुआ भी तो इसका लाभकारी परिणाम टिकेगा नहीं। 

इसका नुकसान आज नहीं तो कल आपको ही भुगतना पड़ेगा।

स्माइल मेल के माध्यम से यही संकल्प लिया गया है कि जो भी जानकारी मुझे अपने 

स्वाध्याय से, तप से और लगातार दशकों के अभ्यास और प्रयोग से मिली है उसे बिना 

किसी अपेक्षा के दूसरों के साथ शेयर करूंगा। 

बाटूंगा।


भारत वर्ष में युग-युग से ऐसा होता आया है। अभी भी मुस्कान मेल यही कर रहा है।

मुसकान मेल के माध्यम से जो भी जानकारी बांटी जाती है वह पूरी जिम्मेदारी के साथ 

बांटी जाती है। हर रोज सुबह आप जो कुछ सुनते हैं वह मेरा अपना सत्य होता है। 

मैं आपको कोई गलत जानकारी , असत्य जानकारी जानबूझ कर नहीं दे सकता।


जब आप मेरे संपर्क में होते हैं तो आपको किस रूप में अगला कदम उठाना है , उसका

क्या लाभ हो सकता है, नुकसान हो सकता है, यह बिल्कुल साफ साफ बताता हूं। ऐसा 

इसलिए कि जो मेरा अनुभव है वह आपका भी अनुभव हो सकता है।


देखिए मेरे तन - मन पर जो घटित हुआ है उससे मिलता जुलता आपका भी अनुभव हो 

सकता है। 

एक मानव और दूसरे मानव की बनावट में बहुत ज्यादा का अंतर नहीं होता। कुछ-कुछ 

थोड़ा सा मिलता जुलता होता है और कुछ-कुछ थोड़ा सा अलग होता है। लेकिन हर 

मानव कुल मिलाकर मानव ही तो होता है ना।

ऐसा ही है ना .....

   
हम मानव मिल कर संकल्प लें कि परस्पर एक दूसरे के अनुभवों का लाभ बिना किसी 

उम्मीद के शेयर करेंगे। एक दूसरे को सहायता करेंगे।

मुस्कान मेल का यही पैगाम है।

इसी बात पर हो जाए एक मुसकान...

मुस्कुराइए ना

दुनिया में सबसे सुन्दर मुस्कान नहीं मुस्कुराए ऐसा हो नहीं सकता।


टेक केयर बाई